सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (27 सितंबर) को बड़ा फैसला सुनाते हुए अडल्टरी को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया है। कोर्ट ने अडल्टरी (व्यभिचार) मामले में आईपीसीसी की धारा 497 (अडल्टरी) को असंवैधानिक करार दिया है। पांच जजों की बेंच में शामिल चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस आरएफ नरीमन ने आईपीसी के सेक्शन 497 को अपराध के दायरे से बाहर करने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला की गरिमा सबसे ऊपर है। पति पत्ती का स्वामी नहीं है। अदालत ने कहा कि धारा 497 पुरुष को मनमानी का अधिकार देने वाली है। सुप्रीम कोर्ट ने विवाहेतर संबंधों पर फैसला सुनाते हुए कहा कि एडल्ट्री (व्याभिचार) अपराध नहीं हो सकता।
शीर्ष कोर्ट केवल पुरुष को दोषी मानने वाले भारतीय दंड संहिता के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुनाया है। आपको बता दें कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने आठ अगस्त को इस पर फैसला सुरक्षित रखा था।
सुनवाई करने वाली पीठ में जस्टिस आरएफ नरीमन, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा भी शामिल हैं। 158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 में विवाहेतर संबंधों को अपराध माना गया है। इसमें विवाहेतर संबंध रखने वाले पुरुष को आरोपित कहा गया है।
इसके मुताबिक, किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उसकी पत्नी से संबंध रखना दुष्कर्म नहीं होगा, बल्कि इसे व्यभिचार माना जाएगा। इस पर सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा था कि प्रथम दृष्टया यह कानून लैंगिक समानता की अवधारणा के खिलाफ है। ऐसे मामले में केवल पुरुष को ही दोषी क्यों माना जाए? केंद्र सरकार ने यह कहते हुए कानून का समर्थन किया है कि विवाह संस्था की पवित्रता बनाए रखने के लिए यह कानून आवश्यक है।
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला- व्याभिचार अब अपराध नहीं, आईपीसी की धारा 497 को संविधान पीठ ने किया रद्द
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