कल बुधवार सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST प्रमोशन में आरक्षण पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया, और यह भी साफ़ कर दिया है की एससी-एसटी आरक्षण में भी क्रीमीलेयर का सिद्धांत लागू होगा। पांच जजों की टीम ने यह भी कहा की संवैधानिक कोर्ट के पास सबसे पिछड़े वर्ग में क्रीमीलेयर के लिए किसी भी तरह के आरक्षण को खत्म करने की पूरी ताकत है।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई में पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने यह भी साफ़ करते हुए कहा है की ‘यह संभव नहीं होगा अगर उस वर्ग के भीतर सिर्फ क्रीमीलेयर सरकारी क्षेत्र में प्रतिष्ठित नौकरियां हासिल कर ले और अपनी स्थिति सुदृढ़ कर ले जबकि वर्ग के शेष लोग पिछड़े ही बने रहें, जैसा कि वे हमेशा से थे।’
कोर्ट की संवैधानिक पीठ के अनुसार आरक्षण का अर्थ यह नहीं है की पिछड़ी जातीय उच्च जातियों व अगड़ों के साथ हाथ से हाथ मिलाकर बराबरी के आधार पर समान्य रूप से आगे बढे यह संभव नहीं होगा यदि किसी वर्ग में क्रीमी लेयर सभी प्रमुख सरकारी नौकरियां ले जाए तथा शेष वर्ग को पिछड़ा ही छोड़ दे, जैसा वे हमेशा थे।
जस्टिस नरीमन ने 58 पन्नों फैसला पढ़ा, जो की सर्वसम्मति से दिया गया फैसला है, उसमे उन्होंने कहा है की ‘एससी-एसटी सर्वाधिक पिछड़े या समाज के कमजोर तबके में भी सबसे अधिक कमजोर हैं’ और उन्हें पिछड़ा माना जा सकता है। पीठ ने कहा कि पदोन्नति दिये जाने के समय हर बार ‘प्रशासन की दक्षता’ देखनी होगी। और नागराज मामले में फैसले के उस हिस्से पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता नहीं है, जिसने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये ‘क्रीमीलेयर की कसौटी’ लागू की थी।
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