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एक बड़े सुरक्षा अधिकारी ने बताया की पूरे देश की सुरक्षा एजेंसियों को 12 फ़रवरी को अलर्ट किया गया था कि जैश-ए-मोहम्मद सैन्य बलों पर बड़ा हमला कर सकता है. पुलवामा में हुए हमले की ज़िम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ही ली है.

जैश-ए-मोहम्मद ने एक वीडियो जारी किया था जिसमें अफ़ग़ानिस्तान में इसी तरह का हमला दिखाया गया था. संगठन ने दावा किया था, “जुल्म का बदला लेने के लिए” वह कश्मीर में इसी तरह से हमला करेगा. इसी वीडियो के आधार पर राज्य के ख़ुफ़िया विभाग ने जानकारियां साझा की थीं.

पहचान गुप्त रखे जाने की शर्त पर एक सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि अगर स्टेट इंटेलिजेंस की इनपुट को नई दिल्ली के साथ पहले से ही शेयर किया गया था तो 14 फ़रवरी को पुलवामा में हुआ हमला साफ़ तौर पर सुरक्षा में एक बड़ी चूक है.

56 इंच का सीना रखने वाले मोदी के काल में ऐसे घटना हुई ही क्यों। बता दे की मोदी अपने पिछले भाषणों में लगातार यह भरोसा दिलाते रहे है की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद आतंकवादियों के हौसले परस्त है। और वह भूल कर भी भारत की ओर नहीं देखेंगे। परन्तु पुलवामा की घटना ने मोदी के इस दावे की पोल खोलकर रख दी है अब तोह इस बात पर लोग भी कहने लगे है की मोदी की बाते सिर्फ जुमला ही है और कुछ नहीं। भाजपा सरकार को इस जुमले वाली राजनीती को छोड़ कर ऐसी नीतियों पर काम करना होगा जो ऐसी हरकत करने वाले आतंकवादियों को जड़ से खत्म कर दे। ना की सिर्फ बातूनी और जुमले वाली राजनीति पर

इस पुरे मामले पर जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भी माना है की कही न कही तो लापरवाही हुई है इस आतंकवादी हमले के बाद राज्य में सभी महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों की चौकसी बढ़ाने तथा तत्काल सुरक्षा प्रबंधन किए जाने के लिए कमांडरों को निर्देश दिए गए है ।

यह हमला इतना ख़तरनाक था कि इसकी चपेट में आई एक बस लोहे और रबर के ढेर में तब्दील हो गई है. इस बस में कम से कम 44 सीआरपीएफ़ जवान सवार थे. देखा जाये तोह यह घटना कश्मीर में चल रहे अशांति पूर्ण माहौल से निपटने के लिए सरकार द्वारा बनाई गईं खामियों वाली नीति और कार्रवाइयों की असफलता का परिणाम है.

चरमपंथ की विचारधारा को ख़त्म करने की कोशिश करने के बजाए सुरक्षा बलों द्वारा चरमपंथियों को मारे जाने को ही सैन्य नीति की सफलता मान लिया गया था, हालाँकि इसके दौरान भारत को अपने बहुत से वीर बहादुरों को खोना पड़ा है, सेना और चरमपंथियों के बीच लड़ाई के कारण कश्मीर के और नौजवानों ने हथियार उठा लिए और भारतीय सुरक्षा बलों के साथ लड़ाई में जुट गए. साथ ही इसने कश्मीर के लोगों और केंद्र सरकार के बीच की दूरी को भी और बढ़ा दिया.

क्या चरमपंथी लोगों में पनप रही यह बेचैनी अनसुलझे राजनीतिक विवाद, लोगों के लोकतांत्रित अधिकारों का हनन और मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों की अनदेखी करने से पैदा हुई है. यह सवाल बार बार सरकार को कटघरे में खड़ा कर देता है

पुलवामा का हमला एक चेतावनी है. यह चरमपंथ में एक नए ट्रेंड को दिखाता है. जिस तरीके से हमला किया गया है उसकी भायवहता उसे पिछले कई हमलों से अलग करती है.

यह हमला एक सबक देता है कि कश्मीर पर दोषपूर्ण नीतियां हमें एक खतरनाक भंवर की ओर धकेल रही हैं और इंसान इसका शिकार हो रहे हैं चाहे वो किसी भी क्षेत्र के हों.

The post सुरक्षा एजेंसियों ने पहले ही किया था अलर्ट, फिर भी पुलवामा में आतंकी हमले को रोकने में नाकाम appeared first on National Dastak.


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