सुप्रीम कोर्ट से आइएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी को बड़ी राहत मिली है। सर्वोच्च अदालत ने एक मामले को स्थानान्तरित करने के लिए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा दायर याचिका पर ‘कैट’ के चेयरमैन के आदेश को निरस्त करने के उत्तराखंड हाई कोर्ट के फैसले को शुक्रवार को बरकरार रखा।
शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली एम्स की अपील को 25 हजार रुपये के जुर्माने के साथ खारिज किया। समाचार एजेंसी भाषा की रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश को सही ठहराया और कहा कि केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) के चेयरमैन का अधिकरण की दो सदस्यीय पीठ के सामने लंबित कार्यवाही पर रोक का आदेश ‘‘क्षेत्राधिकार से बाहर का’’ और ‘‘कानून के सामने नहीं टिकने वाला’’ है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायपालिका के मुख्य/प्रधान न्यायाधीश या अधीनस्थ अदालतों के प्रमुख न्यायाधीश की तरह चेयरमैन प्रोटोकॉल में ऊपर हो सकते हैं और उनकी अतिरिक्त प्रशासनिक ड्यूटी तथा जिम्मेदारी हो सकती हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, न्यायिक रूप से काम करते हुए चेयरमैन किसी अन्य सदस्य के बराबर है। चेयरमैन बड़ी पीठ के सामने लंबित कार्यवाही पर रोक नहीं हटा सकते। हमें उच्च न्यायालय के तर्कों में दखलअंदाजी का कोई आधार नहीं लगता। उच्च न्यायालय ने जुर्माने के साथ रिट याचिका का अनुरोध स्वीकार करके सही फैसला किया।’’
कैट की पीठ इस मामले में जुलाई 2017 से चतुर्वेदी द्वारा दायर मामले की सुनवाई कर रही थी। यह मामला नई दिल्ली के एम्स द्वारा 2015-16 की मूल्यांकन रिपोर्ट में प्रतिकूल प्रविष्टियों से संबंधित है।
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