मौजूदा सरकार और रिजर्व बैंक में बैंक की स्वतंत्रता और आर्थिक नीतियों के विषय को लेकर अक्सर टकराव होते देखा गया है। रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया द्वारा मोदी सरकार पर बैंक के निर्णयों को प्रभावित करने के आरोप भी लगाए गए है। कुछ इन्ही मामलो की वजह से यह माना गया था की पिछले साल दिसम्बर में RBI के गवर्नर उर्जित पटेल ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था, हालांकि उर्जित पटेल ने इस्तीफे के पीछे निजी कारणों को बताया था।
परन्तु इतना जरूर है की रिजर्व बैंक और मौजूदा सरकार के बीच कुछ मामलों में सहमति न होने के कारण अक्सर दोनों के बीच टकराव की बाते सामने आती है। जिसके कारण कभी कभी बैंक के कुछ बड़े अधिकारी द्वारा इस्तीफ़ा भी दे दिया जाता है।
इसी प्रकार हाल ही में रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। उन्होंने अपने कार्यकाल के पुरा होने में कुछ ही महीने पहले ही इस्तीफे का निर्णय ले लिया है। विरल आचार्य बैंक की स्वायत्तता के मजबूत पक्षधर माने जाते थे। आचार्य का यह मानना था कि आरबीआई की स्वतंत्रता आर्थिक प्रगति एवं वित्तीय स्थिरता के लिए आवश्यक है। इसी बात को लेकर मोदी सरकार उनकी तनातनी होती हुई भी देखी गई थी। उन्होंने मौजूदा सरकार को एक तरह से चेतावनी देते हुए कहा की,केन्द्रीय बैंक की स्वतंत्रता को अगर कमतर आंका गया तो इसके ‘घातक’ परिणाम हो सकते हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर अपने 3 साल के कार्यकाल के पूरा होने से 6 माह पहले ही पद छोड़ने वाले आचार्य मौद्रिक नीति विभाग के प्रमुख थे। एक बार विरल आचार्य ने कहा था कि कई देशों में केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता के साथ समझौता किया जा रहा है। उन्होंने कहा था कि जो सरकारें अपने केंद्रीय बैंकों की स्वायत्तता का सम्मान नहीं करतीं, उन्हें देर-सबेर वित्तीय बाजारों के आक्रोश का सामना करना ही पड़ता है। बता दें की आचार्य के उस संबोधन से आरबीआई और सरकार के बीच के रिश्तों में दरार पड़नी शुरू हो गई थी।
पिछले ढाई वर्षो में रिजर्व बैंक के साथ काफी उतार चढ़ाव देखने को मिला है। इसकी शुरुआत नीति निर्माण में परिवर्तन के साथ हुई थी और जब दर तय करने का काम 6 सदस्यीय समिति को दे दिया गया था। इस फैसले को विशेषज्ञों ने सही दिशा में उठाया गया कदम बताया था। इसके पश्चात दिसंबर 2018 में अचानक उर्जित पटेल के इस्तीफे के बाद विरल आचार्य के इस्तीफे की भी अटकलें लगाई जाने लगी। जिसके बाद आरबीआई ने स्पष्टीकरण देकर इस बात से इनकार कर दिया था।
आपको बता दें की, विरल आचार्य ने मात्र 42 साल की उम्र में इतना बड़ा पद हासिल किया। रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति जब कभी भी महंगाई के प्रति नरम रुख दिखाती, वह अक्सर विरोध में खड़े हो जाते थे। आचार्य आईआईटी मुंबई के छात्र रहे हैं और 1995 में कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग में स्नातक और न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी से 2001 में फाइनेंस में पीएचडी की है। साल 2001 से 2008 तक आचार्य लंदन बिजनेस स्कूल में रहे हैं। उन्होंने न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की उपाधि भी हासिल की थी।
बताया जा रहा है की, पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य इस्तीफे के बाद न्यूयोर्क यूनिवर्सिटी के सेटर्न स्कूल ऑफ बिजनेस में बतौर प्रोफेसर ज्वॉइन करेंगे। उनका कार्यकाल 20 जनवरी 2020 को पूरा होना था। परन्तु अब वह 2020 के बजाय अगस्त में ही न्यूयॉर्क यूनिर्विसटी के स्टर्न बिजनेस स्कूल में वापसी करेंगे।
विरल आचार्य द्वारा बीजेपी सरकार पर रिजर्व बैंक के स्वतंत्रता को लेकर लगाए गए आरोप हैरान करने वाले है। इन आरोपों से तो यह प्रतीत होता है की मोदी सरकार रिजर्व बैंक की कार्यप्रणाली को भी प्रभावित करना चाहती है। मौजूदा सरकार द्वारा RBI की स्वयायत्ता को प्रभावित करने की कोशिश करना बिलकुल भी उचित नहीं है।
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