जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने केन्द्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की जिला अदालतों में रिक्त 33 पदों को भरने के लिए देशभर से आवेदन आमंत्रित किए हैं, जिस पर विवाद खड़ा हो गया है। विपक्षी दलों ने अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान खत्म होने के बाद इन दोनों केन्द्र प्रशासित क्षेत्रों के रोजगार के अवसरों को सभी भारतीयों के लिए खोलने पर कड़ी आपत्ति जताई है।

जम्मू-कश्मीर
फाइल फोटो

उच्च न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की जिला अदालतों में जिन 33 गैर राजपत्रित अधिकारी पदों के लिये देशभर के योग्य उम्मीदवारों से आवेदन मांगे हैं, उनमें वरिष्ठ तथा कनिष्ठ स्तर के आशुलिपिक (स्टेनोग्राफर), टंकक (टाइपिस्ट), कंपोजिटर , बिजली मिस्त्री तथा चालकों के पद शामिल हैं। रिक्तियों को भरने के लिए जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के महा पंजीयक संजय धर की ओर से 26 दिसंबर को जारी विज्ञापन में आवेदन जमा कराने की अंतिम तिथि 31 जुलाई 2020 दी गई है।

अदालत की इस अधिसूचना के बाद नेशनल कांफ्रेंस, जेकेएनपीपी और विभिन्न वाम दलों समेत विपक्षी पार्टियों ने विरोध किया है। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में सरकारी नौकरियों में स्थानीय निवासियों को आरक्षण देने की मांग की।

समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, नेशनल कांफ्रेंस के प्रांतीय अध्यक्ष देवेन्द्र सिंह राणा ने दलील दी कि हालिया वर्षों में केन्द्र शासित प्रदेश में बेरोजगारी खतरनाक ढंग से बढ़ी है और राज्य की नौकरियां सिर्फ स्थानीय लोगों के लिये आरक्षित होनी चाहिये। राणा ने कहा, “जम्मू-कश्मीर की सरकारी नौकरियां शिक्षित बेरोजगार स्थानीय निवासियों के लिये हैं और इन्हें सिर्फ स्थानीय लोगों के लिये ही आरक्षित रखा जाए।”

जेकेएनपीपी के अध्यक्ष हर्ष देव सिंह ने पत्रकारों से कहा, “यह न केवल स्थानीय, बेरोजगार, शिक्षित युवाओं की उम्मीदों पर पानी फेरेगा, बल्कि पूर्ववर्ती राज्य के शिक्षित और आकांक्षी युवाओं पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा।”

वहीं, माकपा की राज्य इकाई के सचिव जी एन मलिक ने भी इस कदम का विरोध करते हुए कहा कि यह अनुच्छेद 370 और 35ए हटाए जाने के बाद भाजपा सरकार का जम्मू-कश्मीर के बेरोजगार युवाओं के लिये “पहला तोहफा” है।

जम्मू-कश्मीर की जिला अदालतों की नौकरियों के लिए देशभर से आवेदन मांगे जाने पर मचा विवाद


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