भारतीय जनता पार्टी ने जबसे सत्ता संभाली है देश में ऐसा साम्प्रदयिक मौहाल बन गया है जिसने ना जाने कितने लोगो और परिवारों के जीवन को बर्बाद कर दिया है और इसमें खसकर दलित, अल्पसंख्यक समुदाय आदि शामिल है। दलितों पर बढ़ते अत्याचार हो या मुस्लिमो के प्रति हिन्दू समुदाय का व्यवहार यह समय के साथ साथ परिवर्तित होता जा रहा है।
हाल ही में झारखंड में एक मुस्लिम युवक के साथ हुई मॉब लिंचिंग की घटना के बाद एक बार फिर यह सवाल उठने लगा है कि क्या नरेन्द्र मोदी के फिर प्रधानमंत्री बनने से भारत के मुसलमान भय में है । मोदी के पिछले कार्यकाल में यह सवाल काफी जोर-शोर से उठता रहा है और आज भी उनके नेतृत्व वाली सरकारों पर यह सवाल उठता रहता है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि नरेन्द्र मोदी के दामन पर गोधरा का दाग है । मोदी उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे। इस घटना के बाद से मोदी की छवि एक ख़ास समुदाय के विरोध की बन गई थी । इसके साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ RSS से भी उनका पुराना नाता रहा है। आरएसएस की छवि भी मुस्लिम समुदाय के प्रति कुछ ख़ास नरम वाली नहीं मानी जाती है। हालांकि नरेन्द्र मोदी ने व्यक्तिगत रूप से कभी उनके खिलाफ कोई बयान नहीं दिया है , फिर भी वे अपनी इस प्रकार की छवि से पीछा नहीं छुड़ा पाए है और इसका मुख्य कारण भी उनके राज में बढ़ती साम्प्रदायिक तनाव है।
दूसरी ओर लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस अध्यक्ष पर तंज कसते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा था कि हिन्दू बहुल क्षेत्र से राहुल गांधी डरे हुए हैं। वे केरल की वायनाड सीट से भी लोकसभा का चुनाव लड़ने जा रहे हैं, क्योंकि हिन्दुओं की तुलना में वहां अल्पसंख्यक वोटरों की संख्या ज्यादा है। राहुल के साथ पहली बार ऐसा हुआ जब वे अमेठी से चुनाव हारे। वायनाड के रास्ते जरूर वे लोकसभा पहुंचने में सफल रहे।
अल्पसंख्यक समुदाय के साथ बढ़ते तनाव को लेकर उनकी यह चिंता भी सही है भाजपा सरकार के दौरान उन्हें कई बार मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। भाजपा के बड़े बड़े मंत्री भी अपने भाषणों में ऐसे शैली का प्रयोग करते है जिसके करना अल्पसंख्यक समुदाय को यह एहसास दिलाया जाता है की वह हमारे समाज का हिस्सा नहीं है। लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी के बागपत क्षेत्र में एक टीवी चैनल से चर्चा करते हुए कुछ मुस्लिमों ने साफ कहा था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अच्छे हैं और उन्हें फिर से प्रधानमंत्री बनना चाहिए। लेकिन, उनका कहना यह भी था कि तीन तलाक के मुद्दे पर सरकार को दखल नहीं देना चाहिए। मौलाना जो भी फैसला देंगे, हमें मान्य होगा।
भाजपा यह जानती है की अपसंख्यक समुदाय के वोट उनके लिए काफी अहमियत रखता है और हार जीत के फैसले में उनका भी वोट उतना ही अहमियत रखता है जितना बाकी समुदायों का। चुनाव के दौरान अपसंख्यक समुदाय के वोट के लिए भाजपा नए नए पैतरे अपनाती रहती है। एक ओर 3 तलाक के मुद्दे पर जहां उन्होंने मुस्लिम महिलाओं का समर्थन हासिल किया, वहीं इंदौर में बोहरा मस्जिद में जाकर समग्र विकास और पूरे देश की खुशहाली की बात की। उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूं कि मुस्लिम युवाओं के एक हाथ में कुरान हो तो दूसरे में कंप्यूटर। इससे ही देश तरक्की की राह पर आगे बढ़ पाएगा।
हाल ही में मोदी सरकार-2 ने ईद के मौके पर अल्पसंख्यकों के लिए स्कॉलरशिप की घोषणा की थी। इसका फायदा निश्चित ही सभी को मिलेगा।
इस सबके बावजूद लगता नहीं कि मोदी को अभी इस सवाल से निजात मिलेगी। मुस्लिम वोट बैंक की खातिर समय-समय पर इस तरह के सवाल उठते रहेंगे। यह सवाल इसलिए भी उठते हैं, क्योंकि मोदी को लेकर मुसलमानों में अभी भी विश्वास की कमी है, जो मोदी के लिए बड़ी चुनौती भी है।
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